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परमपूज्य स्वर्गीय पण्डित श्री रघुनन्दन प्रसाद भार्गव जी

संस्कृति संस्कृत संस्कार शिक्षा समिति के संस्थापक ग्राम बरौदी जिला दतिया के निवासी परमपूज्य स्वर्गीय पण्डित श्री रघुनन्दन प्रसाद भार्गव जी हैं। वे इस समिति के प्रथम संस्थापक अध्यक्ष रहे तथा उनके मार्गदर्शन में सारस्वत साधना के कार्य आरम्भ हुए तथा एक गुरुकुल की स्थापना की गयी। उनकी शिक्षा वाराणसी में गुरुकुल पद्धति से हुयी तथा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों की पारम्परिक शिक्षा ग्रहण की। अध्ययन समाप्ति के उपरान्त वे आबकारी विभाग में सेवारत रहे तथा सेवानिवृत्ति के पश्चात् उन्होंने वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करते हुए भारतीय जीवनदर्शन, ऋषि परम्परा संरक्षण तथा संवर्धन का कार्य पूर्णतः समर्पित होकर आरम्भ कर दिया। उन्होंने सर्वप्रथम प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रयत्न आरंभ किए तथा स्वयं की कृषि भूमि पर विविध दुर्लभ प्रजातियों के वृक्षों का रोपण कर समाज में प्रेरणा का केन्द्र बने। उनके इस महनीय कार्य से प्रेरित होकर अनेक कृषकों ने अपने कृषि क्षत्रों में वृक्षारोपण करना व बाग-बगीचे लगाना प्रारम्भ कर दिया। इस कार्य हेतु उन्हें स्थानीय प्रशासन, वन एवं उद्यान विभाग से समय-समय पर प्रशस्ति, सहयोग व मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा। वे प्राचीन ऋषि परम्परा एवं वैदिक ज्ञान विज्ञान के प्रबल पक्षधर थे अतः उन्होंने समाज को वेदविज्ञान, संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों के अध्ययन हेतु प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा से स्वयं उनका परिवार एवं समाज भी संस्कृत शिक्षा की ओर अग्रसर हुआ तथा अनेक अभिभावकों ने अपने बालक-बालिकाओं को विद्यालय शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के लिए संस्कृत माध्यम का ही चयन करने के लिए प्रेरित किया। फलस्वरूप उनके परिवार एवं समाज के अनेक बालक – बालिकाएँ वैदिक एवं शास्त्रीय शिक्षा ग्रहण करने हेतु दूर-दूर के गुरुकुलों में गए। पण्डित रघुनन्दन प्रसाद भार्गव जी भारतीय मनीषा तथा ज्ञानमीमांसा के संवाहक, सामाजिक चिन्तक, धर्मशास्त्रों के ज्ञाता, नीतिशास्त्रज्ञ, न्याय के पक्षधर, लोकव्यवहारविद्, मनीषी, प्रकृतिप्रेमी, पर्यावरणरक्षक, समाज में व्याप्त कुरीतियों व अन्धविश्वासों के प्रबल विरोधी तथा स्त्री शिक्षा के विशेष आग्रही थे। उन्होंने अपने परिश्रम एवं पुरुषार्थ से अभिसिंचित भूमि में बनाये गए उद्यान में ही समिति का कार्यालय संचालित करने हेतु स्थान प्रदान किया जहाँ वर्ष 2003 से अनवरत सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक कार्य संचालित किये जा रहे हैं। सन् 2008 में उनका देहावसान हुआ और वे देवत्व में विलीन हो गए।

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